बुधनी विधानसभा में नसरुल्लागंज क्षेत्र में एक नई बीमारी ने किसानों के प्राण सुखा दिए है। सोयाबीन की जिस फसल को देखकर 15 दिन पहले तक किसान अच्छी दीवाली बनाने की आस लगाये बैठा था, वो एका-एक पीली पड़ने लगी है और फल बन नहीं रहा है। जब पीले पड़े तने को चीरकर देखा गया तो उसके अंदर इल्लियां निकल रही है। यह एक प्रकार का पीड़क (dectes-texus stem borer or more commonly as soybean stem borer).
क्या है ये बीमारी?
अमेरिका में नेब्रास्का स्तिथ Institute of Agriculture and Natural Resources (IANR – कृषि एवं प्राकृतिक संसाधन संस्थान https://cropwatch.unl.edu/soybean-management/insects-soybean-stem-borer) के अनुसार, इसके वयस्क टिड्डे जून के अंत से अगस्त माह तक खेतों में मजूद होते हैं। मादा पत्ति और तने को जोड़ने वाले डण्ठल (petiole) पर अण्डे देती है। जब अण्डे से लार्वा (इल्ली) निकलती है तो वो तने में छेद करके घुस जाती है और pith (जहाँ पौधा अपना का पौषण तत्व संग्रह और परिवहित करते है) को खाने लगती है। लार्वा (इल्ली) हल्के क्रीम रंग की होती है औऱ बड़े होने पर पौन इंच की हो सकती है। जैसे जैसे लार्वा बड़ा होता है वो अपने भोजन की दिशा में, यानी पौधे की जड़ की तरफ़ बढ़ता है और जगह को खोखला करके चैम्बर नुमा (overwintering chamber) बना लेता है जिसमें वो ठंड गुज़ार सके। इस चैम्बर के कारण पौधे का विकास रुक जाती है औऱ फल बैठने में कठिनाई होती है। लार्वा सर्दी के बाद फिर टिड्डा बनकर बाहर आता है।
ये बीमारी सबसे पहले कहाँ पाई गई?
अमेरिका में सन 1992 में NCSRP (उत्तर-मध्य सोयाबीन शोध कार्यक्रम https://soybeanresearchinfo.com/soybean-pest/soybean-stem-borer/) बनाया गया, जो कि अमेरिका के उत्तर-मध्य के राज्यों में सोयाबीन की उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने के लिए गठित किया गया।
इस संस्था के अनुसार 1970 के दशक से ये टिड्डा सक्रिय था परन्तु 2007 में इसने अमेरिका में लगभग 40-50% सोयाबीन की फसल को नुकसान पहुँचाया। कोई उपाय ना किये जाने पर, अगले वर्ष इस टिड्डे के प्रकोप और बढ़ने की संभावना रहेगी।
उपाय:
उपरोक्त बताए हुए अमेरिकी संस्थान के मुताबित निम्नलिखित उपाय हैं
१) कीटनाशक-
१.१- वयस्क टिड्डे पर कीटनाशक का असर पड़ता है, परन्तु चूंकि वो लंबी अवधि के लिए पौधे पर पाया जाता है, यह बहुत महँगा पड़ता है
१.२- लार्वा पौधे के तने के भीतर सुरक्षित होता है, इसलिए ऊपर से छिड़काव किये हुए कीटनाशक का असर नहीं होता।
२) संक्रिमित फसल वाले हिस्से को शीघ्र काटा जाना चाहिये।
३) फसल का चक्रीकरण- सोयाबीन के स्थान पर अन्य फसल लें।
४) इस टिड्डे को बड़े तने वाली खरपतवार प्रजातियों की ओर आकर्षित किया जा सकता है। खेत के चारो ओर सूरजमुखी, आदि को रोपे, ताकि मुख्य फ़सल की बजाय टिड्डा उनमें अण्डे दे।
५) ज़्यादा समयावधि वाली किस्मों की फसल लेने की कोशिश करें
आगे की राह-
१) सरकार से अपेक्षा-अनजानी समस्या जो किसानों के लिये त्रासदी का रूप ले रही है, सरकार से मुआवज़ा तो मिलना ही चाहिये।
२) किसान नेताओं से अपेक्षा- किसान नेताओं को चाहिए कि दूरदृष्टि का परिचय देते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य और मुआवजे से आगे की बाते भी करें, कृषि में शोध का बजट, कृषि विश्वविद्यालयो में सुधार, आदि की ओर ज़्यादा से ज़्यादा ध्यान दे।
३) किसानों से अपेक्षा-
३.१- स्वयं अपना हित समझें, कृषि संबंधी जानकारी जुटाते रहें
३.२- अपने बच्चों को कृषि संबंधी स्नातक/स्नातकोत्तर शिक्षा लेने के लिए प्रेरित करें
३.३- चुनावों में कृषि संबंधित मुददों को प्राथमिकता पर रखें, उसी आधार पर मतदान करें
(लेखक- आलोक यादव)
Good!👍.
सबसे ज्यादा कठिन साइंस है खेती।इतनी आसानी से कैसे करते है लोग।दवाई देने वाले वो बेचते है जो बैंकाक भेजे।
किसान लालच और डर के बीच फस गया है।थोड़ा निकलने का प्रयास करे,और अपनी अगली पीढ़ी को agricultur science पढ़कर बेहतर application करने के लिए प्रेरित करे तो आगे आने वाले समय मे,बेरोजगारी से मुक्ति,उत्तम स्वास्थ्य,बेहतर पर्यावरण,मजबूत आत्मनिर्भर गांव जैसे सारे solution मुझे खेती में दिखते है।
सराहनीय लेख,कृषि में शोध यह मुद्दा पहली बार किसी ने उठाया है,वाकई में कृषि से सम्बंधित जितने भी विभाग प्रशाशन में है सिर्फ सैलेरी लेने के लिए ही बने है,कॉलेजेस की स्तिथि भी दयनीय ही है
Well done very current issue our state agricultural we can educated our future generations in agriculture culture science 👍
Being a soya state the problem is worrisome. Good to know someone has highlighted the core problem with probable solution. Hope it gets to the authority.